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बुधवार, 25 दिसंबर 2013

व्यास-गद्दी -लघु कथा

आरती और भारती तैयार होकर त्रिपाठी जी के यहाँ ''श्रीरामचरितमानस'' के अखंड पाठ में सम्मिलित होने के लिए पहुंची .अभी 'बालकाण्ड' का पाठ ही चल रहा था .आरती व् भारती को देखकर त्रिपाठी जी की बिटिया सुनयना मुस्कुराती हुई आई और उन्हें छेड़ते हुए बोली -'' दोनों भाभियाँ एक साथ ...आनंद आ गया देखकर !'' आइये बैठिये ना .'' आरती सुनयना के कंधे पर स्नेह से हाथ रखते हुए बोली -'' दीदी हम ज्यादा देर न बैठ पायेंगें ...हमें जल्दी जल्दी रामायण के पाठ का सुअवसर दिलवा दो .'' आरती की बात पर सुनयना आश्चर्य चकित होते हुए बोली -'' भाभी हमारे यहाँ व्यास-गद्दी पर महिलाएं नहीं बैठती ..आपको नहीं पता ?' ' आरती ने भारती की ओर देखा और भारती मुस्कुराती हुई सुनयना के पास आकर बोली -'' हमें जल्दी है दीदी ...शायद माता जी आरती के समय आएँगी .'' ये कहकर सुनयना के बहुत आग्रह पर भी वे नहीं रुकी .घर की ओर जाते समय आरती व् भारती के दिमाग में एक ही प्रश्न बार-बार घूम रहा था कि '' फिर ''रामायण पाठ '' के आरम्भ में आह्वान करते समय माता सीता को क्यों बुलाया जाता है ..व्यास-गद्दी पर बैठकर माता सीता का नाम ही क्यों लिया जाता है जबकि वे भी तो एक महिलां है ..हम अपवित्र हैं तो वे भी तो ....!!!''
शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

पुरुषीय -नैतिकता :कहानी

Protest : lots of furious people protesting (a group of people protesting, protest, demonstrator, protest man, demonstrations, protest, demonstrator, hooligan, fan, protest design, protest poster) Stock Photo
''हत्यारे को फांसी दो ...फांसी दो .....फांसी दो ...!!!'' के नारों से शहर की गली गली गूँज रही थी .अपनी ही पत्नी की हत्या कर सात हिस्सों में लाश को काटकर तंदूर में भून डालने वाले विलास को फांसी दिए जाने की वकालत समाज का हर तबका कर रहा था .विलास की दरिंदगी का किस्सा जहाँ भी , जिसने भी सुना ,अख़बार में पढ़ा -उसकी आत्मा कांप उठी और होंठों पर बस यही प्रश्न -' क्या कोई इंसान ऐसा भी कर सकता है ?'प्रियंका से प्रेम-विवाह किया था विलास ने फिर ऐसा क्या हुआ जो विलास एक इंसान से हैवान बन बैठा ?' 'नौ महीने दस दिन चली उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में ऐसा कौन-सा ज़हर घुल गया जिसने विलास को एक जंगली कुत्ता बना डाला ?'
जेल में भी साथी कैदी उससे बात करने में कतराते और उसके साथ बैठते उन्हें घिन्न आती .साफ्टवेयर इंजीनियर विलास आज कैदी बनकर जेल में घुटने मोड़कर उनके बीच में अपना सिर दिए बैठा रहता .न उसके घर से उसके माता-पिता मिलने आये और न ही प्रियंका के घर से कोई उससे मिलने आया .
आज कचहरी में जज साहब के सामने विलास को अपना पक्ष रखना था .पुलिस सुरक्षा में कचहरी में पहुँचते ही ''इस वहशी को फांसी दो !!!'' के नारे गूंजने लगे .हजारों की संख्या में जमा भीड़ के हाथों से विलास को ज़िंदा बचाकर कोर्ट-रूम तक ले जाना पुलिस के लिए उतना ही मुश्किल काम था जितना मधुमक्खियों के उड़ते माल से बचकर निकलना पर पुलिस वालों ने आज पसीना बहाते हुए कर्तव्य पालन की मिसाल खड़ी कर दी . जनता के हाथ मात्र विलास की कमीज़ के कॉलर का जरा सा टुकड़ा ही लग पाया जो एक बहादुर जनसेवक ने पुलिस के डंडे खाकर भी आगे बढ़कर खींच लिया था .
कोर्ट-रूम में जज साहब के द्वारा यह पूछे जाने पर कि ''तुम अपनी सफाई में क्या कहना चाहोगे ?'' पर विलास ने धीरे से उत्तर देना शुरू किया -'' सर ! मैं निर्दोष हूँ ..मुझे ये सब करने के लिए प्रियंका ने ही उकसाया .वो प्रेमिका से कभी पत्नी बन ही नहीं पायी .जब तक हमने प्रेम-विवाह नहीं किया था तब तक उसका अपने घर वालों से छिप छिप मोबाइल पर मुझसे बात करना मुझे बहुत अच्छा लगता था पर विवाह के बाद भी वो किसी से छिप छिप कर फोन पर बात करती .मैं पूछता तो कहती ...मम्मी का फोन है ...फिर मैं कहता मेरी बात कराओ तो गुस्सा हो जाती ..कहती मुझ पर शक करते हो ..जाओ नहीं कराती बात ..यूँ टाल जाती . मुझसे रोज़ नए-नए गिफ्ट एक्सपैक्ट करती ..मैं न लाता तो न खाना बनाती और न पानी को पूछती .विवाह के दो माह के अंदर उसने मेरे जमा बैंक-बैलेंस का आधा रुपया कपड़ों , जेवरों में फूंक डाला .मैंने टोका तो खुद पर मिटटी का तेल छिड़ककर माचिस लेकर खड़ी हो गयी .
मैंने तो ये सोचकर उससे विवाह किया था कि पढ़ी लिखी ब्रॉड माइंडेड लड़की है ..हमारी अच्छी छनेगी पर उसने तो मुझे मेरे ही घर में घोट डाला .मेरे माता-पिता ने मेरी इच्छा को सम्मान देते हुए मेरे प्रेम विवाह को मान्यता दे दी .वे घर आने वाले थे .मैंने प्रियंका से कहा -'' आज साड़ी पहन लेना ..माँ को पसंद है'' .. पर वो माँ-पिताजी के सामने क्वार्टर पैंट-टॉप में आकर खड़ी हो गयी .माँ-पिता जी के जाने के बाद मैंने गुस्से में उसके तमाचा जड़ दिया तो अलमारी से साड़ी निकल कर बैड पर चढ़ गयी और सीलिंग फैन से लटकने की धमकी देने लगी और कहने लगी -''तुमने मुझे इसी पहनावे में पसंद किया था और आज इसी के कारण मेरे तमाचा जड़ दिया ..तुम ऐसा नहीं कर सकते !!!''
विवाह के छठे महीने हमें खुशखबरी मिली कि हमारे घर नन्हा मेहमान आने वाला है पर प्रियंका ने मुझसे पूछे बिना ..जब मैं कम्पनी के काम से बाहर गया हुआ था बच्चा गिरा दिया .कारण पूछने पर बोली -अभी मैं केवल तेईस साल की हूँ ..अभी से माँ बनने का नाटक मुझसे नहीं होगा और हां जब मैं अपने माता -पिता से बिना पूछे तुमसे शादी कर सकती हूँ तब हर काम मैं तुमसे पूछ पूछ कर करूंगी इसकी उम्मीद तुम मुझसे मत रखना .''
प्रियंका की ये हरकतें कब मुझे इंसान से हैवान बनाती गई मैं खुद भी न जान पाया .मुझसे मिलने आये दोस्ते से उसका घुल-मिल कर बातें करना मुझे अंदर तक जला डालता .मैं उसे टोकता तो कहती -''अगर मैं मर्दों से बात करने में शर्माती तो क्या तुमसे बात कर पाती ..अब मेरा आज़ाद ख्यालात होना खटक रहा है पर विवाह से पहले तुम्ही कहते थे ना कि सिमटी-सकुची गंवार लड़कियां तुम्हे पसंद नहीं ...जो ठीक से बात भी नहीं कर पाती .''
प्रियंका के इस व्यवहार ने मुझे डरा डाला था .विवाह से पहले बात और थी पर अब वो मेरी पत्नी थी ..प्रेमिका की बातें दोस्तों में कर मैं भी मजे लेता था पर पत्नी ...पत्नी दोस्तों के साथ बैठ कर मजे ले ये मुझे क्या किसी भी मर्द को बर्दाश्त नहीं हो सकता !प्रेमिका आज़ाद ख़यालात रख सकती है पर पत्नी नहीं ....प्रेमिका के लिए रूपये हवा में उड़ाये जा सकते हैं पर पत्नी के लिए नहीं .पत्नी देवी होती है और जब वो अपने देवी -स्वरुप की गरिमा का ध्यान नहीं रखती तब उसके ऐसे ही टुकड़े किये जाते है जैसे मैंने किये ...आखिर नैतिकता भी कोई चीज़ है .'' ये कहकर विलास चुप हो गया .जज साहब निर्णय सुरक्षित रख कोर्ट रूम से चले गए तब पुलिस विलास को कोर्ट रूम से वापस अपनी जीप की ओर ले चली .कचहरी परिसर में अब केवल कुछ महिला संगठन की सदस्याएं -''फांसी दो ..फांसी दो !'' का नारा बुलंद कर रही थी .सभी आंदोलनकारी पुरुष अब नदारद थे .
शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

सरम भी तो आवै है -लघु कथा

Happy_old_couple : Grandpa gives flowers to my grandmother. Sweetheart vector illustration. EPS-8 Vector
''अजी सुनते हो .....मुझे तो नयी बहू के लक्षण अच्छे नहीं लगते ..'' मित्तल बाबू की धर्मपत्नी अपने इकलौते पुत्र की नयी -नवेली दुल्हन के बारे में पतिदेव से शिकायत करती हुई बोली .मित्तल बाबू अखबार पढ़ते हुए उदासीन भाव से बोले -'' एक महीना भी पूरा नहीं हुआ बेटे के ब्याह को और तुम्हारी ये चुगलियां शुरू .अब बस भी करो .क्या गलत दिख गया बहू में ?'' मित्तल बाबू की बात पर नाक-भौ सिकोड़ते हुए उनकी धर्मपत्नी मिर्च भरी जुबान से बोली -''चुगलियां .....पता भी है कल नल ठीक करने वाला मिस्त्री आया था और ये आपकी लाड़ली बहू बिना मुंह ढके हंस-हंस कर बतिया रही थी उस गैर-मर्द से ...सरम भी तो आवै है कि नहीं !'' मित्तल बाबू अख़बार मोड़कर सामने रखी मेज़ पर पटककर रखते हुए बोले -'' शर्म की ठेकेदार धर्मपत्नी जी जब पुरुष टेलर के यहाँ जाकर खुद को नपवाती हो तब शर्म कहाँ जाती है और चूड़ीवाले से चूड़ी पहनते समय भी शर्म आती है तुम्हे ....नहीं ना ..तब बहू के लक्षण की बात रहने ही दो तुम ...व्हाट नॉनसेंस !'' मित्तल बाबू ये कहते हुए खड़े हुए और वहाँ से चल दिए .उनकी धर्मपत्नी उनके जाते ही सिर पर हाथ रखते हुए बोली -'' ये तो लल्लू हैं क्या जाने सरम क्या होवै है !!!''
शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 15 दिसंबर 2013

तेरहवीं -कहानी


''मृत्यु , दाह-संस्कार और तेरहवीं .....इसके बाद बस स्मृति-पटल पर दिवंगत व्यक्ति की छवि ,उसका मुस्कुराना ,रूठना , मनाना , हिदायतें और शेष इच्छाओं की अपूर्णता को लेकर कसक ...बस यही तो है इस जीवन का सच .'' विचारों के ऐसे ही तूफानी उथल -पुथल से जूझ रही थी पुष्पा अपने सामने घर पर ताला लगवाते समय . आज उसका दिल ही नहीं बल्कि उसकी आत्मा भी चीत्कार कर रही थी .
तेरह दिन पहले तक ज़िंदगी धीमी ही सही सुकूनी रफ़्तार से चल रही थी .पुष्पा और उसके पतिदेव अपने इस आशियाने में लम्बा वैवाहिक सफ़र पूरा कर इतमीनान से रह रहे थे .एकलौता बेटा व् बहू दूर शहर में अपना आशियाना बसाये हुए थे ....पर तेरह दिन पहले की वह कातिल सुबह पुष्पा के पतिदेव को ह्रदय -गति रुक जाने के कारण अंतिम -यात्रा पर ले गयी और पुष्पा के दिल में बस एक सदमा कि ''अब तो जाना ही होगा '' दे गयी . किसी गैर के घर नहीं बल्कि अपने एकलौते बेटे के घर जाना भी पुष्पा के लिए दुखदायी ही था .पतिदेव के जीवित रहते कई बार कहा था पुष्पा ने बेटे के घर चलकर रहने के लिए पर रिटायर्ड बैंक अधिकारी पतिदेव ने हर बार ठुकरा दिया था ये कहकर -'' तुम जाना चाहती हो तो जाओ मैं अकेला रह लूँगा !'' पुष्पा जानती थी कि पतिदेव का यहीं अपने घर पर रहना स्वाभिमानी होने के साथ-साथ इस घर से जुड़ा मोह भी है .अपने ही बेटे के घर मेहमान बनकर जाने पर जो इज्ज़त बख्शी जाती है वो स्थायी रूप से निवास करने पर ज़िल्लत का रूप ले लेती है फिर अपनी इच्छानुसार जागने ,उठने-बैठने ,खाने-पीने ,घूमने ,बुलाने-जाने की जो आज़ादी यहाँ है वो बेटे के घर कहाँ ! दो दिन भी काटने मुश्किल हो जाते थे उसके घर जब कभी जाकर रहे थे दोनों .बेटे-बहू का भी दोष नहीं उनकी अपनी जीवन -शैली है .यहाँ बरसों पुराने दोस्तों के साथ पुरानी यादों को ज़िंदा कर जीवन के इस अंतिम -पड़ाव का जो आनंद था वो बेटे के घर पर टी.वी. के सामने चिपके रहने में कहाँ !....पर आज ...आज तो पुष्पा को जाना ही पड़ेगा ! शरीर में इतना दम नहीं कि अकेले रह पाये और बेटा कब तक यहाँ रुक पायेगा ? ...पूरे तेरह दिन नौकरी ,बच्चों की पढाई ,अपना घर छोड़कर तन-मन से पिता की आत्मा की शांति के लिए लगा रहा है बेटा ...लेकिन अब एक और दिन रुक पाना सम्भव नहीं ! पोता-पोती धूम मचा रहे हैं ...पूरे तेरह दिन बाद वापस अपने घर जा रहे हैं.कितना होम-वर्क करना पड़ेगा -इसकी चिंता भी सता रही है उन्हें ....और पुष्पा है कि बार-बार आँगन में लगे पौधों के पास जाकर मन ही मन माफ़ी मांग रही है ...'माफ़ कर देना यदि किसी दिन पडोसी तुम्हे पानी देना भूल जाएँ ..कह दिया है उनसे पर तुम हो तो मेरे और उनके रोपे हुए .तुम ही साक्षी हो हम दोनों पति-पत्नी के आखिरी दिनों की मीठी नोंक-झोंक ,बड़बड़ाने और उखाड़ने के '' ......तभी नज़र पड़ी पुष्पा की कोने में पड़ी झाड़ू पर ...'' कौन बुहारने आएगा अब आँगन .......दिल करता है यहाँ की सुबह ,दोपहर , शाम और रात सब अपने थैले में भरकर ले जाऊं !''पुष्पा ये सोच ही रही थी कि बेटे ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा -'' चलो माँ ...कार में बैठो ...देर हो रही है ....अब यहाँ क्या जब पिता जी ही नहीं रहे !'' पुष्पा ने कातर दृष्टि से बेटे की ओर देखा . कान में फिर से गूंजा -''अब यहाँ क्या जब पिता जी ही नहीं रहे .'' पुष्पा के दिल में आया कहे ''सब कुछ तो है ....यहीं है मेरा सब कुछ '' पर बोल कुछ न पाई .कार में जाकर बैठने से पहले मुड़कर घर को प्रणाम किया -'' तेरी दीवारों ,छतों ,आँगन में मेरा जीवन बसंत सा बीता ...अब जा रही हूँ ...शायद फिर न आ पाऊं तुझे सजाने-संवारने ...मुझे याद रखना !'' ये सोचते सोचते कार में पिछली सीट पर बैठ गयी पुष्पा . कार स्टार्ट होते ही ज्यूँ ही चली पुष्पा को लगा मानों उसके पतिदेव घर के द्वार पर खड़े हैं और कह रहे हैं -'' जाओ पुष्पा ...तुम जाना चाहती हो तो जाओ ...मैं अकेला रह लूँगा !!'' पुष्पा आँखों से ओझल होने तक मुड़-मुड़ कर अपना आशियाना देखती रही और उसे महसूस हुआ मानों पतिदेव के साथ -साथ उसकी तेरहवीं भी आज हो गयी और वो आज अपनी आत्मा यहीं छोड़ अनंत मुक्ति-पथ पर चल पड़ी है .

[जनवाणी के रविवाणी में नौ फरवरी २०१४ अंक में प्रकाशित ]

शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

जातिवाद का ज़हर -लघु कथा

प्राइमरी स्कूल के अहाते में खेलते हुए बिटटू की पेन्सिल पैंट की जेब से निकलकर गिर पड़ी . वही पास में खड़े नोनू ने उसे उठाकर ज्यूँ ही बिटटू को पकड़ाना चाहा स्कूल के बच्चों का एक झुण्ड ताली बजाता हुआ बिटटू और नोनू को चिढ़ाने लगा -'' हा जी हा ...पेन्सिल तो चूड़े की हो गयी .'' बिटटू ने पेन्सिल नहीं पकड़ी और नोनू सर झुकाकर रोने लगा . उनकी टीचर ने उधर से गुजरते हुए ये सब देखा तो सभी बच्चों को डांटते हुए बोली - ''ये गन्दी बातें किसने सिखाई तुम्हें ? नोनू तुम सब में सबसे अच्छा बच्चा है ...उसने बिटटू की सहायता की है और सहायता करने वाला भगवान् का फरिश्ता होता है .'' ये कहते कहते वे झुकी और उन्होंने नोनू को गोद में उठा लिया और बच्चों के उस झुण्ड को सम्बोधित करते हुए बोली -''...लो मैं भी हो गयी चूड़े की !! मैं ने नोनू को गोद में जो उठा लिया !! कहो अब कहो !'' टीचर की इस बात को सुनकर सब बच्चों ने अपने कान पकड़ लिए पर टीचर जानती हैं ये कान इनके बड़ों को पकड़ने चाहिए जो इन्हें जातिवाद का ज़हर घुट्टी में घोलकर कर पिलाते हैं .
शिखा कौशिक 'नूतन

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

तमाचा-लघु कथा

अख़बार की रविवार -मैगजीन में छपी ग़ज़ल पढ़ते हुए टीटू की नज़र ग़ज़ल के नीचे छपे लेखिका के संपर्क नंबर गयी . ग़ज़ल अच्छी लगी तो उसने तुरंत अपने मोबाइल से लेखिका के दिए गए संपर्क नंबर पर कॉल कर दी .कॉल दूसरी ओर से रिसीव किये जाते ही टीटू ने लेखिका से उसकी ग़ज़ल की तारीफ की और पूछा -'' यदि आपके इस नंबर पर आपसे वैसे भी बात कर लूँ तो कोई दिक्कत तो नी जी ?'' टीटू के इस प्रश्न के जवाब में लेखिका ने गम्भीर स्वर में पूछा -'' यदि मेरी जगह तुम्हारी बहन से फोन पर कोई अजनबी यही प्रश्न करता कि ''बात करने में कोई दिक्कत तो नी जी '' तब तुम्हारा जवाब क्या होता ? वही मेरा जवाब है .'' लेखिका के ये कहते ही टीटू ने फोन काट दिया .उसे लगा पुरुषवादी सोच का तमाचा एक स्त्री ने उसके ही मुंह पर मार दिया है .
शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 8 दिसंबर 2013

रामलीला-मंच -लघु कथा

किशोरी सुकन्या नानी के घर गाँव आयी हुई थी . गाँव में स्थानीय नागरिकों द्वारा रामलीला का मंचन किया जा रहा था .सुकन्या भी नानी के साथ रामलीला का मंचन देखने पहुंची .उसे ये देखकर आश्चर्य हुआ कि सीता आदि स्त्री पात्रों का अभिनय भी पुरुष कलाकार स्त्री बनकर निभा रहे थे .उसने नानी से पूछा -'' नानी जी यहाँ गाँव में कोई महिला कलाकार नहीं है क्या जो आदमी ही औरत बनकर स्त्री-पात्रों का रोल निभा रहे हैं ?'' उसकी नानी उसके सिर पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोली -'' अरी बावली कहीं की ! रामलीला का मंच बहुत पवित्तर होवै है .औरत जात इस पे चढ़ेगी तो ये मैला न हो जावेगा ...औरते तो होवै ही हैं गन्दी !'' नानी की बात सुनकर सुकन्या तपाक से बोली - '' तो ये औरते यहाँ राम-लीला देखने भी क्यूँ आती हैं .ये परिसर भी तो मैला हो जायेगा नानी जी !!!'' ये कहकर सुकन्या उठी और वहाँ से घर की ओर चल दी .
शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

आकर्षक कवयित्री -लघु कथा

''अरे वाह ! माँ कितनी सुन्दर लग रही हो ......पर लिपिस्टिक थोडा डार्क लग रही है ....और बालों का आपका ये स्टाइल तो बिजली ही गिरा रहा है ...पर ये बैंगिल तो मेरी है ...आपने क्यूँ ली माँ ! आप किसी पेज थ्री पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रही हैं क्या ?'' किशोरी रिया की बात पर ड्रेसिंग टेबिल के आईने में अपने को ऊपर से नीचे तक निहारते हुए उसकी माँ चहकते हुए बोली - '' अरे नहीं ...पार्टी में नहीं आज मुझे कवि-सम्मलेन में कविता-पाठ करने जाना है .लोग कविता थोड़े ही सुनने आते हैं ???वरना निर्मला जी की तुलना में मेरी कविताओं की ज्यादा वाह-वाहवाही कोई करता क्या ? निर्मला जी ठहरी गाँधीवादी महिला .साधारण रहन-सहन !अब कौन समझाए उन्हें कवयित्री का आकर्षक दिखना भी कितना जरूरी होता है ! '' ये कहकर रिया की माँ ने अपने पर परफ्यूम का स्प्रे किया और अपने को महकाने के साथ साथ सारे वातावरण को बहका दिया .
शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

एक अच्छा सा फोटो -लघु कथा


अखबार के एडिटर महोदय का फोन आया .बोले -'' दीप्ति जी आपका आलेख सोमवार को प्रकाशित कर रहे हैं ..आप अपना अच्छा सा फोटो भेज दें .'' ये सुनते ही दीप्ति को झटका सा लगा .पहले भेजा तो था एक फोटो .अब जैसी वो है वैसा ही फोटो था .दीप्ति ने एडिटर महोदय को आश्वस्त करते हुए कि -'' वो भेजने का प्रयास करेगी '' बातचीत को सुखद विराम दे दिया पर इस बात ने उसके दिमाग में उथल -पुथल मचा दी .उसने सोचा -'' आखिर ये अच्छा सा फोटो क्यों जरूरी है ? क्या पाठक आलेख की सार्थकता के स्थान पर आलेख के साथ छपे लेखक के फोटो पर ज्यादा ध्यान देते हैं ? या ये बाध्यता केवल लेखिकाओं के साथ है कि उनकी रचना के साथ एक अच्छा सा फोटो भी हो ?क्या लेखिकाओं को अपनी लेखन-शैली को परिष्कृत करने ,अलंकृत करने ,शब्द ज्ञान को समृद्ध करने के स्थान पर अपना एक अच्छा सा फोटो अपनी रचना के साथ छपवाने से पाठकों में अधिक लोकप्रियता हासिल हो जायेगी ?'' तभी दीप्ति का ध्यान पास रखी साहित्यिक पत्रिका पर गया जिसमे महादेवी वर्मा जी का अत्यंत सीधा-सादा फोटो छपा हुआ था .दीप्ति उस फोटो को देखते हुए सोचने लगी -'' नहीं कभी नहीं ! एक लेखिका को केवल अपने लेखन पर ध्यान देना चाहिए और जिस पाठक की रुचि अच्छे फोटो में हो वे मॉडल्स के फोटो चाव से देख सकते हैं .लेखक व् लेखिका अपने लेखन से ही पहचाने जाये यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है !''
शिखा कौशिक 'नूतन

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

घटिया सोच-लघु कथा

tired businessman or taxi car driver -
शेखर अपनी नई खरीदी हुई कार से पहली बार अपने ऑफिस पहुंचा तो साथियों ने दावत की फरमाइश रख दी .दावत में उसके बॉस भी शामिल हुए .बातों ही बातों में शेखर के बॉस के मुख से वो बात निकल ही गयी जो उनके दिल में थी .वे व्यंग्यमयी स्वर में बोले थे -''भई अब तो मीडिल क्लास में भी बहुत लोगों ने कार कर ली है .'' शेखर को उनकी ये बात चुभी तो बहुत पर उसने ज़ाहिर नहीं होने दिया .ऑफिस से घर लौटते समय शाम को शेखर ट्रैफिक जाम में फंस गया .उसकी कार के बगल में एक रिक्शा भी जाम में फंस गयी .तभी उस रिक्शा के चालक का मोबाइल फोन बज उठा .रिक्शावाले को मोबाइल पर बतियाते देख शेखर के मन में आया '' लो भई अब रिक्शावालों पर भी मोबाइल हो गया .'' पर अगले ही पल शेखर अपनी इस सोच पर शर्मिंदा हो उठा .उसने सोचा -''जब मैं खुद से कम आय वर्ग के व्यक्ति को आधुनिक सुविधा का प्रयोग करते देख उनके प्रति ये घटिया सोच रखता हूँ तब बॉस की बात मुझे चुभी क्यों वे भी तो इसी घटिया सोच को ही प्रकट कर रहे थे !''
शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 1 दिसंबर 2013

पुरुष हुए शर्मिंदा -लघु कथा


लिफ्ट में घुसते ही बाइस वर्षीय सारा ने देखा लिफ्ट में उसके अलावा केवल उसके पिता की उम्र के एक शख्स लिफ्ट में थे .लिफ्ट चलते ही सारा ने उस व्यक्ति से जितनी दूरी सम्भव थी ...बना ली . सारा के मन में आया -'' पहले जब लिफ्ट में इस उम्र के किसी पुरुष को देख लेती थी तब रिलैक्स हो जाती थी ...चलो घबराने की कोई बात नहीं पर तरुण तेजपाल ने अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ जो किया उसके बाद से तो सच में किसी भी उम्र के पुरुष पर विश्वास नहीं किया जा सकता है .....!!'' सारा के सोचते सोचते ही लिफ्ट रुक गयी और गेट खुलते ही वो बाहर निकल ली .पीछे-पीछे वे सज्जन भी निकल लिए और उन्होंने सारा को टोककर रोकते हुए कहा -'' सुनो बेटी ! सब पुरुष तरुण तेजपाल जैसे नहीं होते .उसने जो किया उससे मैं भी शर्मिंदा हूँ !'' सारा ने उन सज्जन के चेहरे पर आये दीन भावों को पढ़ते हुए कहा -'' यस आई नो सर '' और ये सोचते हुए वहाँ से आगे बढ़ चली कि '' सच में तरुण तेजपाल ने सभी पुरुषों को शर्मिंदा कर डाला !''
शिखा कौशिक 'नूतन '