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रविवार, 28 सितंबर 2014

जनवाणी में प्रकाशित -विधायक की पत्नी -कहानी


नौ साल बाद नौकरानी की हत्या के आरोप से सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किये जाने पर गरिमा सिंह ने राहत की सांस ली .लगातार छठी बार विधायक चुने गए उसके पतिदेव स्वराज सिंह सौ से भी ज्यादा करों का काफिला लेकर गरिमा को जेल से सम्मान सहित लेने आये .स्वराज को देखते ही गरिमा ने हजारों की भीड़ के सामने झुककर उनके चरण छुए और पैरों की धूल अपनी मांग में सजा ली .सारे जनसमुदाय के सामने आदर्श दंपत्ति गरिमा व् स्वराज की चारों ओर जय-जयकार होने लगी .अट्ठारह वर्षीय बेटा वैभव भी कार से उतर कर आया और माँ के चरण-स्पर्श किये . गरिमा ने उसे गले लगा लिया और उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए नम आँखों के साथ बोली -'' जग-जग जियो मेरे लाल !'' इसके बाद गरिमा को लेकर स्वराज का काफिला गृहनगर के लिए रवाना हो लिया .गृहनगर पहुँचने पर गरिमा का जोरदार स्वागत किया गया .जगह-जगह महिलाओं ने गरिमा की कार रोककर उससे हाथ मिलाया और सिसकते हुए बोली -''दीदी आप के बिना तो सारा नगर ही सूना हो गया था ...आज न्याय हुआ है !'' गरिमा की आँखें भी भर आयी .रुद्ध गले से बोली-''तुम्हारी दुआओं का ही फल है जो आज सम्मान के साथ वापस आयी हूँ !'' गरिमा का ऐसा स्वागत क्यूँ न होता ? आखिर गरिमा ही थी जिसने कभी किसी गरीब-दलित को घर की चौखट से खली हाथ न जाने दिया .क्षेत्र में कभी भी कोई दुर्घटना हुई और गरिमा ने उसके घर जाकर सांत्वना न दी हो- ऐसा कभी न हुआ . दीदी ,देवी और भी न जाने कितने सम्मान सूचक शब्दों से क्षेत्र की जनता पूजती थी गरिमा को . इन्ही विचारों व् संस्मरणों में खोई गरिमा जब विधायक -निवास पर पहुंची तब पहले तो उसकी आँखों में नमी आई और फिर वे दहकने लगी . गरिमा ने खुद को सम्भाला .पूरा विधायक-निवास फूलों से सजाया गया था .वैभव ने पीछे से आकर गरिमा के कन्धों पर हाथ रखते हुए कहा -'' माँ ...देखो ...कैसा लग रहा है ? ...मैंने खुद खड़े रहकर सजवाया है .'' गरिमा ने उत्साहित स्वर में कहा -'' बहुत सुन्दर ...आखिर हो तो तुम मेरे ही बेटे ना ..ऐसी सजावट तुम्हारी हर बर्थ-डे पर करवाती थी मैं ....'' ये कहते-कहते गरिमा अतीत में खोने लगी तो वैभव ने उसके कंधें झकझोरते हुए कहा -'' माँ ! अब मैं बालिग हो चूका हूँ ...चलो अंदर चलो ...आपका रूम दिखाता हूँ ...मैंने कुछ नहीं बदलने दिया ..जो जैसा था वैसा ही है ..एक -एक चीज जहाँ आप रखती वहीं रखी हुई है .'' ये कहकर वैभव के साथ गरिमा ज्यों ही अंदर की ओर चली उसने एक बार थोड़ी दूर खड़े अपने किसी ख़ास आदमी से बतियाते स्वराज की ओर देखा और फिर अंदर की ओर कदम बढ़ा दिए .वैभव ने गलत नहीं कहा था पूरा घर वैसा ही था जैसा गरिमा को छोड़कर जाना पड़ा था .गरिमा को उसके बैडरूम में छोड़कर वैभव फ्रैश होने चला गया . गरिमा ने दीवार पर टंगी अपनी व् स्वराज की विवाह की फोटो देखी और उसकी आँखों में खून उतर आया पर तुरंत उसने अपने को संयमित किया .गरिमा ने वज्र ह्रदय कर सोचा -'' बस अब एक भी रात की मोहलत न दूँगी ...अब मेरा बेटा बालिग हो चूका है ..मुझे किसी चीज की चिंता नहीं ..अपनी जान की भी नहीं ..क्या कहा था तुमने स्वराज जब जेल में बंद मुझसे मिलने के बहाने मुझे धमकाने आये थे ..यही ना कि ''यदि अपने बेटे की खैरियत चाहती हो तो चुप रहो ..जानती हो ना अभी वो नाबालिग है .तुम्हारे डैडी की अरबों की जायदाद भले ही उसके नाम हो पर अभी मैं ही उसका अभिभावक होने के नाते जो चाहूं कर सकता हूँ ..मेरी इमेज जनता में बिगाड़ी तो मैं भूल जाउंगा कि वैभव मेरा भी बेटा है ....समझ रही हो ना ....'' समझ रही थी स्वराज मैं सब समझ रही थी .मेरी ममता को हथियार बनाकर तुम ये ही चाहते थे कि मैं ना खोलूं वे राज़ जिनके कारण मैं निर्दोष होते हुए भी जेल में रहूँ और तुम आजाद .नौकरानी से अवैध सम्बन्ध तुम्हारे ...मारपीट न करती उससे तो क्या करती ..तुम्हारी शह पर थप्पड़ मारा था उसने मेरे और तुम खड़े देखते रहे थे ..बल्कि मुस्कुराये भी थे अपनी पत्नी की इस बेइज्जती पर ..और जब इन सब तनावों को झेल पाने में मैं अक्षम होने लगी तब तुमने अपने खरीदे हुए डॉक्टर से नशीले इंजेक्शन लगवाने शुरू कर दिए ..मुझे पागल करने का पूरा इंतजाम कर डाला था तुमने तभी उस नौकरानी के गर्भवती हो जाने पर तुमने उसका क़त्ल कर डाला ....मैं कभी न जान पाती यदि मेरा बेटा न बताता मुझे ..हाँ उसने देखा था तुम्हे उस नौकरानी का गला दबाते हुए और सारा इल्जाम लगा डाला मुझ पर कि अर्द्ध-विक्षिप्त मनोअवस्था में मैंने यह काम कर डाला .मैं तो सब राज़ पहले दिन ही खोल देती पर तुम्हारी आँखों में मैंने वो वहशीपन देखा था जो मेरे बेटे के टुकड़े-टुकड़े करने में भी संकोच न करता ...बेटा तो तुम्हारा भी था पर तुमने उसको एक हथियार बना डाला मुझे इस्तेमाल करने के लिए अपनी स्वार्थ-सिद्धि हेतु . आज तुम इस बैडरूम में आओगे तो खुद चलकर पर जाओगे चार कन्धों पर ..मेरी पिस्टल तो मेरी अलमारी में ही होगी ..'' ये सोचते हुए गरिमा बैड से उतरने ही वाली थी कि वैभव वहाँ आ पहुंचा और किवाड़ बंद करता हुआ बोला -'' माँ ..क्या पिस्टल लेने के लिए उठ रही हो ...वो तो डैडी ने आपके जेल जाते ही गायब कर दी थी ..पर आप फ़िक्र न करो अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी ...फोन की घंटी बजते ही आप जो सुनेंगी उससे आपको राहत मिल जायेगी .'' तभी फोन की घंटी बजी .गरिमा ने वैभव के चेरे को ध्यान से देखते देखते रिसीवर उठा लिया .दूसरी ओर से आने वाले जो शब्द गरिमा के कानों में गूँज रहे थे वो वर्षा की ठंडी बूंदों की भांति सात साल से सुलग रही उसके दिल की आग को हौले-हौले ठंडा कर रहे थे -'' गरिमा जी ..मैं थानाध्यक्ष बोल रहा हूँ ..बड़े दुःख के साथ मुझे आपको ये सूचित करना पड़ रहा है कि विधायक स्वराज सिंह जी की गाड़ी अनियंत्रित होकर सामने से आ रहे ट्रक से टकरा गयी जिसके कारण उनकी गाड़ी के परखच्चे उड़ गए और मौके पर ही विधायक जी की मृत्यु हो गयी .'' गरिमा की आँखें वैभव के चेहरे पर ही चिपक गयी जो शांत भाव से युक्त था .वैभव ने आगे बढ़कर गरिमा की मांग का सिन्दूर पोंछ दिया और उसकी कलाई थामते हुए बोला -'' अब इन सब की कोई जरूरत नहीं ..ये चूड़ी भी तोड़ डालो माँ !...आपने नौ साल का वनवास केवल मेरे लिए झेला तब क्या मैं आपके लिए इतना भी न करता माँ ..... आप का नया जीवन आज और अभी से शुरू हो गया है  ..... आप चुनाव लड़ोगी क्योंकि अब आप दिवंगत विधायक की पतिव्रता पत्नी हो ..'' ये कहकर वैभव अपने डैडी की डैडबॉडी लाने के लिए वहाँ से चल दिया .
शिखा कौशिक 'नूतन'

1 टिप्पणी:

Dr. Rajeev K. Upadhyay ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना। वर्तमान को रेखांकित करती। स्वयं शून्य