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रविवार, 28 दिसंबर 2014

''क्योंकि वो एक लड़की है ''

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बाबू रामधन ने हाथ देकर ऑटो रुकवाया . वे शहर आये थे अस्पताल  में भर्ती अपने मित्र सुरेश  का हालचाल जानने .सुरेश को पिछले हफ्ते ही दिल का दौरा पड़ा  था .ऑटो में पहले से ही एक लड़की बैठी हुई थी . बाबू रामधन ने ऑटो वाले से पूछा '' बेटा सिटी हॉस्पिटल चलेगा ?'' ऑटो वाला बोला -'' हां ताऊ ...वही जा रहा हूँ ...बैठ  लो तावली !''  बाबू रामधन सकुचाते हुए उस लड़की के बराबर में बैठ लिए और  मन में सोचने लगे -'' कितनी बेशर्मी आ गयी है ...मर्दों के कपडे पहन कर फिरती हैं लड़कियां ..के कहवें हैं जींस ..टी शर्ट ..पहले तो जनानियां धोती पहने थी तो उस पर भी घर से निकलते समय चद्दर  ओढ़ लेवें थी ..इब देक्खो !!!'' बाबू रामधन के ये सोचते सोचते उस लड़की का मोबाइल बज उठा .उसने कॉल रिसीव करते हुए कहा -सर मैं बस पहुँच ही रही हूँ ..डोंट वरी !'' बाबू रामधन का दिमाग और गरम हो गया .वे सोचने लगे -'' इस मोबाइल ने तो सारा गुड गोबर  ही कर डाला ..जनानियों को क्या जरूरत है इसकी ...बस यार दोस्तों से गप्पे लड़ाने का साधन मिल गया !'' तभी ऑटो रुका क्योंकि अस्पताल आ गया था .बाबू रामधन वही उतर लिए और वो  लड़की भी .बाबू रामधन के देखते देखते वो लड़की तेजी से अस्पताल के अंदर चली  गयी . बाबू रामधन मुंह बिचकाते हुए पूछपाछ कर सुरेश के पास उसके वार्ड में पहुँच गए .वहां सुरेश की सेवा करती हुई नर्स को देखकर वे अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठे .ये नर्स वही लड़की थी जो उनके साथ ऑटो में बैठकर आई थी .उन्होंने मन में सोचा -'' वक्त के साथ म्हारी सोच भी पलटनी चाहिए .वाकई बेशर्म ये मरदाना लिबास में लडकिया नहीं बल्कि हमारी सोच है जो लड़की देखते ही बस उसके लिबास पर आँखें गड़ाने लगते हैं केवल इसलिए  क्योंकि वो एक लड़की  है !!!

शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

कुल का दीपक -लघु कथा



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ओमप्रकाश बाबू के घर में गर्मियों की छुट्टियाँ आते  ही रौनक आ गयी .विवाहित   बेटा  सौरभ  व्  विवाहित  बेटी  विभा  सपरिवार अपने पैतृक घर जो आ गए थे .ओमप्रकाश बाबू का पोता बंटी व् नाती चीकू हमउम्र थे और सारे दिन घर में धूम मचाते .एक  दिन चीकू दौड़कर विभा के पास  रोता हुआ पहुंचा और सुबकते हुए बोला -'' ''मम्मा  चलो  यहाँ से  .......बंटी कहता  है  ये  उसका  घर है  ...हम  मेहमान  हैं  .....उसने  नाना  जी  की बेंत  पर   भी  मुझे  हाथ  लगाने  से  मना  कर  दिया   ...बोला ये  उसके  बाबा  जी  की है  और वे  उसे   ही ज्यादा प्यार   करते   हैं   … क्योंकि वो उनके कुल का दीपकहै  ...चलो  अपने घर चलो  ...'' विभा ये सुनकर आवाक रह गयी .उसने चीकू के आँसूं पोछे और उसे बहलाकर इधर-उधर  की बातों में लगा दिया .उस दिन  से विभा का मूड कुछ उखड गया और वो तय प्रोग्राम को पलटकर जल्दी ससुराल लौट गयी .ससुराल आते ही उसने पाया उसकी ननद सुरभि ; जो उसी शहर में ब्याही  हुई थी ,अपने बेटे टिंकू के साथ  वहां आई हुई थी .विभा को आते देखकर सुरभि ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और चीकू टिंकू का हाथ पकड़कर इधर-उधर डोलने लगा .थोड़ी देर बाद टिंकू रोता हुआ आया और  सुरभि से लिपट गया .सुरभि के चुप कराने पर वो भरे गले से बोल -'' मॉम चीकू भैया ने मुझे बहुत डांटा...  मैंने नाना जी का एक  पेन उनके टेबिल से उठा  लिया तो  वो बोले कि ये उसके बाबा जी  का है और उनकी हर चीज़ उसकी है मेरी नहीं !'' पास बैठी विभा  टिंकू का  हाथ पकड़कर प्यार  से अपनी ओर खींचते हुए  उसके आंसू पोंछकर  बोली -'' ''बेटा ...चल मेरे साथ ...बता कहाँ हैं वो कुल का दीपक ...अभी लगाती हूँ उस के एक चांटा ....यहाँ हर चीज़ तुम्हारी  भी उतनी ही है जितनी चीकू की ...'' ये कहकर विभा खड़ी  हुई ही थी कि चीकू ने आकर कान पकड़ते हुए टिंकू से कहा    -'' सॉरी   ब्रदर ..आई बैग योर पार्डन .'' इस  पर सुरभि विभा दोनों  हँस  पड़ी   .

शिखा कौशिक  'नूतन '

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

''..फिर मौज करो !''

अति मेधावी युवक राम ने अपने लैपटॉप पर उच्च शिक्षा आयोग की वेबसाइट खोली  और डिग्री कॉलेज प्रवक्ता परीक्षा के हिंदी विषय के साक्षात्कार के परिणाम के लिंक पर क्लिक कर दिया .पी.डी.ऍफ़. फ़ाइल खुलते ही राम का दिल धक-धक करने लगा .उसकी आँखों के सामने चयनित अभ्यर्थियों की सूची थी .उसने गौर से एक-एक नाम पढ़ना शुरू किया .कुल चौबीस सफल अभ्यर्थियों में उसका नाम नहीं था .हां !उसके मित्र वैभव का नाम अवश्य था .उसके कानों में वैभव के पिता के कहे गए वचन गूंजने लगे -'' एक बार पैसा दे दो फिर ज़िंदगी भर मौज करो !'' राम के मन में आया -'' ..पर दे कहाँ से दो ? वैभव के पिता तो डिग्री कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष हैं .उनकी हर माह की तनख्वाह एक लाख के लगभग बैठती है पर मेरे पिता जी ..बेचारे एक परचून की दुकान चलाते  हैं और इसी की सीमित आय से उन्होंने मुझे उच्च शिक्षा दिलवाई .हर कक्षा में मैं वैभव की तुलना में ज्यादा अंक लाया और आज वो चयनित हो गया ..मैं रह गया ..क्या ये धोखा नहीं है ? क्या साक्षात्कार बोर्ड केवल अभिनय करने के लिए साक्षात्कार लेता है जबकि पैसा पहुंचाकर वैभव जैसे अभ्यर्थी अपना चयन पहले से ही पक्का कर लेते हैं .ये बीस-पच्चीस लाख देकर पद पाने वाले क्या पद ग्रहण करते ही अपना रुपया वसूलने के हिसाब-किताब में नहीं लग जाते होंगे ! फिर एक प्रश्न मुझे कचोटता है यदि  मेरे पिता जी के पास भी रिश्वत में देने लायक रूपया होता तो क्या मैं भी किसी और का हक़ मारकर पद पर आसीन हो जाता ? क्या मेरे आदर्श ,मेरी नैतिकता इसीलिए ज़िंदा है क्योंकि मैं रिश्वत देने लायक रूपये-पैसे वाला हूँ ही नहीं ?''

ये सोचते-सोचते राम ने अपने लैपटॉप की विंडो शट -डाउन कर दी और दीवार पर लगी घड़ी में समय देखा .रात के नौ बजने आ गए थे .राम के माँ-पिता जी एक देवी-जागरण में गए हुए थे .अतः राम ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठकर उनके लौटने का इंतज़ार करने लगा .उसने सामने मेज पर रखी ''निराला' रचित ''राम की शक्ति पूजा '' उठाई और उसको पढ़ने लगा .राम को लगा जैसे ये उसके ही वर्तमान जीवन की उथल-पुथल पर सृजित रचना है।  ईर्ष्या.,संदेह ,पराजय के भय से आक्रांत स्वयं को धिक्कार लगाते  हुए मानों ये निराला कृत पंक्तियाँ उस पर ही लिखी गयी हैं -
    ''स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संशय ,
    रह-रह उठता जग जीवन में रावण जय-भय ,
    कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार-बार ,
  असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार .''

राम का ह्रदय साक्षात्कार के परिणाम को देखने के  पश्चात इतना अवसाद से भर गया था कि उसने निराला रचित इस महाकाव्यात्मक कविता की पंक्तियों को कई बार दोहराया .उसे भी वर्तमान में विभिन्न सरकारी आयोगों में व्याप्त भ्रष्टाचार रावण की भांति दुर्जेय  प्रतीत होने लगा .उसे लगा इसे भेद पाना असंभव कार्य है .उसका मन धिक्कारने लगा उस दिव्य-शक्ति को भी जो भ्रष्ट लोगों का साथ देती है और उसके जैसे योग्य लोगों को ऐसे मनहूस दिन देखने के लिए विवश कर देती है .सामने पुस्तक की पंक्तियाँ भी उसके मनोभावों को अभिव्यक्त करने वाली  थी -
  '' अन्याय जिधर है उधर शक्ति,
   कहते छल-छल हो गए नयन ,
   कुछ बूँद पुन: छलके दृग-जल
  रुक गया कंठ ...''

ये पढ़ते-पढ़ते राम की आँखें भी भर आई .उसने पलकें बंद की तो दो  अश्रु की बूँदें पुस्तक पर टपक गयी .उसने पुस्तक को वापस मेज पर रख दिया और लम्बी सांस भरकर दीवार पर टंगी अपने माता-पिता के विवाह की तस्वीर देखने लगा .राम सोफे पर से उठकर तस्वीर के पास पहुंचकर धीरे से बोला -'' आप दोनों चिंता न करें ! मैं इस निराशा और भ्रष्ट  तंत्र को भेदकर लक्ष्य-प्राप्ति करके दिखाऊंगा .मैं इनसे डरकर न रेल से कटूँगा न जल कर मरूँगा . न ही पिता जी आप पर दबाव बनाऊंगा कि कहीं से भी पैसों का इंतज़ाम कर रिश्वत दें ताकि मैं भी अपने से ज्यादा काबिल का हक़ छीनकर पद प्राप्ति में सफल हो जाऊं  .'' ये बोलते -बोलते राम के कानों में निराला की पंक्तियाँ गूंजने लगी -
 '' होगी जय , होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन ,
   कह महाशक्ति राम के वदन  में हुई लीन !''
 तभी डोर बैल बजी .राम समझ गया कि माँ व् पिता जी देवी जागरण से लौट आये हैं .एक नज़र दीवार -घडी पर डाली जो अब दस बजा रही थी .राम तेजी से डोर खोलने के लिए बढ़ लिया . अंदर प्रवेश करते ही राम का चेहरा देखकर माँ ने उससे प्रश्न कर डाला ''तू रोया था न बेटा   ?'' राम बनावटी  मुस्कान बनाता हुआ बोला -'' नहीं माँ !'' पर ये कहते -कहते ही वो बिलख कर रो पड़ा और रूंधें गले से ये कहता हुआ माँ के गले लग गया -'' मैं फेल हो गया माँ !'' राम के पिता जी उसके कंधें पर हाथ रखते हुए बोले -'' ..तो इस बार भी तू सफल नहीं हो पाया ...इसमें रोने की क्या बात है ? मिले थे देवी-जागरण में वैभव के पिता .बहुत प्रसन्न थे वैभव के चयनित होने पर .कह रहे थे पच्चीस लाख में सौदा पटा है .बेटा ! मेरे पास न तो इतने पैसे देने के लिए हैं और अगर होते भी तो मैं शिक्षा -विभाग को परचून की दूकान न बनने देता .बेटा ! विचलित मत होना .अपने सद आदर्शों को शक्तिमय  बनाओ  और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु सतत  प्रयासरत रहो .''  पिता जी के प्रेरणामयी वचनों  ने राम के व्यथित ह्रदय को बहुत राहत  पहुंचाई  .माँ ने राम के माथे  को चूमते हुए कहा  -'' तू क्यों निराश होता है लल्ला  ? ले  ये देवी-मैय्या का प्रसाद खा .पैसे देकर प्रोफ़ेसर बनने से अच्छा तो तू अपने पिता जी की दुकान पर उनके साथ बैठ जा .कम से कम मन को ये सुकून तो रहेगा कि तूने किसी और अपने से ज्यादा काबिल का बुरा कर अपना भला नहीं किया है ....सब भुगतना पड़ता है ..किसी और का हक़ मारा है इन पैसा देने वालों ने ....भगवान  सब देखता है .'' माँ ये कहकर नम आँखों को पोंछती हुई अपने कमरे में चली गयी और पिता जी भी राम को '' सो जाओ बेटा '' कहकर भारी मन से वहां से चले गए .
  पूरी रात राम करवटें बदलता रहा .''कैसे सफल हो पाउँगा ?'' ''क्या माँ-पिता जी मेहनतें बेकार चली जाएँगी ?'' ''क्या इस सृष्टि में कोई ऐसी शक्ति नहीं जो मेरे जैसे ईमानदार लोगों की मदद कर सके ?'' ये सब सोचते -सोचते उसका दिमाग थकने लगा और जब माँ ने झकझोर कर उसे जगाया तब सुबह के नौ बजने आये थे .राम अंगड़ाई लेता हुआ बोला -'' अरे ये तो बहुत देर हो गयी .पिता जी तो दूकान पर चले गए होंगे माँ ?'' माँ ने उसे चाय की प्याली पकड़ाते हुए कहा - '' हां ! और ये कहकर गए हैं कि अपनी असफलता पर उदास होने की बिलकुल आवश्यकता नहीं है .यदि  तुम्हारे मन में आत्महत्या जैसा कोई विचार पनप रहा है तो उसे तुरंत कुचल डालो क्योंकि हमारे लिए तुम्ही सब कुछ  हो .तुम कोई उच्चे पदाधिकारी बनते हो या फिर दूकान पर बैठते हो ...हमारे लिए दोनों परिस्थितियों  में तुम हमारे बेटे ही हो .चार लोगों में बैठकर ये कहने से कि हमारा बीटा ये बन गया ...वो बन गया ...से ज्यादा महत्व हमारे लिए तुम्हारा है .समझे ?'' माँ के ये पूछने पर राम विस्मित होता हुआ बोला -'' अरे आप लोग कैसी बातें कर रहे हैं ? मैं क्यों आत्महत्या की सोचने लगा ?'' राम के इस प्रश्न पर माँ ने पलंग के पास रखे स्टूल पर से अखबार को उठकर उसके आगे करते हुए कहा -'' ऐसे ही चिंतित नहीं हैं मैं और तुम्हारे पिता जी ..ये देखो इस लड़के ने क्या किया ?'' राम ने चाय ख़त्म करते हुए प्याली स्टूल पर राखी और माँ के हाथ से अखबार लेते हुए उसके पहले ही पृष्ठ पर प्रकाशित खबर को देखा . खबर की हेडिंग थी -'' साक्षात्कार में चयनित न होने पर युवक ने लगाई फांसी :दो माह पूर्व ही हुआ था विवाह '' . खबर पढ़ते ही राम भौचक्का रह गया .खबर के साथ उसका फांसी पर लटके हुए का फोटो भी था तथा उसकी रोती-बिलखती  नवविवाहिता का फोटो भी साथ में छपा था .खबर में उसके सुसाइड नोट का जिक्र भी था जिसमें उसने साक्षात्कार परिणाम में धांधली का आरोप लगाया था . विश्वविदयालय  टॉपर उस लड़के की फांसी पर लटके हुए की तस्वीर राम ने गौर से देखी तभी उसके कानों में गूंजे वैभव के पिता के वे वचन -'' एक बार पैसा दे दो फिर ज़िंदगी भर मौज करो !''

राम ने गुस्से में अखबार अख़बार को पलंग पर पटक  दिया और रोष में बोला -'' माँ देखा ....योग्य अभ्यर्थी फांसी पर लटक रहे हैं और पैसा देकर लगने वाले मौज कर रहे हैं ...भगवान सब देखता है तो माँ कहाँ है वो भगवान ? दो महीने में ही सुहागन से विधवा हुई इस युवती को क्या कहकर ढांढस बँधायेगा ये सिस्टम ...बहुत बुरा हुआ माँ ..बहुत बुरा हुआ ...पर आप चिंता न करो मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा !'' ये कहते हुए राम ने माँ की हथेली कसकर पकड़ ली .
      करीब छह माह पश्चात वैभव के पिता राम के पिता जी की दुकान पर आये और वैभव के विवाह का निमंत्रण कार्ड   दे गए .वैभव ने भी राम को फोन कर विवाह-समारोह में आने के लिए निमंत्रित किया .वैभव के विवाह-समारोह  में राम  शामिल हुआ .राम को वहां देखते  ही वैभव उससे मिलने आया और धीरे से उसके कान में बोला -'' हुआ नहीं ना अब तक कहीं नौकरी का जुगाड़ ?  अरे यार कब तक ऐसे ही आदर्शवाद के चक्कर में पड़ा रहेगा !तेरा सलेक्शन तो मैं आज ही करवा दूँ बस तू रुपयों का इंतज़ाम कर ले .'' राम उसकी बात पर मुस्कुराता हुआ बोला -''छोड़ ना ..आज ये सब बातें रहने दे ..मेरी शभकामनायें हैं तुझे व् तेरी जीवनसंगिनी को .'' वैभव राम को छेड़ता हुआ बोला '' हमें कब देगा ऐसा मौका ?'' राम थोड़ा शर्माता हुआ बोला -' तू भी ना ..'' वैभव हँसता हुआ बोला -'' पता है ! पिता जी ने बहुत ही मालदार लोग पकडे हैं... मेरी नौकरी लगवाने में जितना पैसा पिता जी को देना पड़ा था उतना नकद पैसा दहेज़ में आया है .नौकरी लगने के कोई एक फायदा थोड़े ही है !'' राम को वैभव की ये बातें बहुत ही हल्के स्तर की लग रही थी पर आज वो पलटकर कुछ नहीं कहना चाहता था क्योंकि आज वैभव के जीवन का बहुत ही खास दिन था .
               वैभव के विवाह -समारोह से लौटकर आये राम के चेहरे पर अपनी असफलताओं को लेकर निराशा के भाव थे .कानों में गूँज रहा था ,''अन्याय जिधर है उधर शक्ति .'' राम के मन में घमासान था .''आखिर ऐसे कैसे भ्रष्ट लोग हमें निर्देशित करने का साहस करते हैं जो हमारा हक़ छीनकर पदासीन हो जाते हैं .मन करता है आयोग के भवन को आग लगा दूँ जहाँ बैठकर भ्रष्ट लोग हमारे भविष्य से खिलवाड़ करते हैं ........वे न केवल हमारा हक़ छीनते हैं वे छीनते हैं माता-पिता की त्याग-तपस्या का सुफल ,सुहागिनों की मांग से सिन्दूर ,मारते हैं कितनी ही माताओं की कोख पर लात और छीनते हैं बूढ़े पिताओं का सहारा .....हाँ आग लगा देनी चाहिए ऐसे भवनों को और सरेआम चौराहे पर फांसी पर लटकाये जाएँ ऐसे भ्रष्ट पदाधिकारी .'' ऐसे अवसाद में डूबे राम को पिाताजी ने एक लड़की का फोटो दिखाते हुए कहा -'' क्या तुझे लड़की पसंद है ?'' फोटो देखकर राम उसे पहचानता हुआ बोला- ''पर ......ये तो वही लड़की है जिसके पति ने साक्षात्कार में चयनित न होने पर आत्महत्या कर ली थी .'' 'हाँ तो '' पिता जी ने कड़क होते हुए कहा .राम संभलता हुआ बोला '' तो .....तो कुछ नहीं ...आपको पसंद है ....माँ को पसंद है .....तो ठीक है .'' राम ये कहकर वहां से चलने लगा तो पिताजी नरम होते हुए बोले -''जिस दिन वो खबर पढ़ी थी और इसका फोटो देखा था उसी दिन निश्चय कर लिया था कि इस बच्ची को इस सदमे से टूटने न दूंगा ,गया था मैं इसके घर का पता करके इसके यहाँ , बता दिया था उन्हें कि मेरा लड़का यू.जी.सी.नेट है और पीएच .डी. भी कर चुका है पर डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर लग पायेगा इसमें संदेह है क्योंकि मैं एक भी पैसा रिश्वत में नहीं दूंगा , मेरी परचून की दुकान है ....मेरे साथ वही संभालता है ...आप लोगों को स्वीकार हो अगर ये रिश्ता तो मुझे सूचित कर दीजियेगा .आज लड़की के ससुर व् पिता आये थे और ये तस्वीर दे गए थे कि तुम्हें दिखा लूँ , लड़की का नाम रीना है ,वह एम.एस.सी.पास है और गृहकार्यों में दक्ष है .'' राम को एकाएक अपने पिताजी पर गर्व हो आया जिनका ह्रदय इतना विशाल है जिसने अनजान लोगों के दुःख को न केवल महसूस किया बल्कि उसे दूर करने के लिए अपना कदम भी बढ़ा दिया .राम ने झुककर पिताजी के चरण छू लिए .
      राम व् रीना का विवाह बहुत साधारण खर्च में संपन्न हुआ .न कोई दिखावा और न कोई लेन-देन .वैभव मय पत्नी , पिताजी सम्मिलित हुआ था राम के विवाह में .वैभव के पिताजी ने एक कोने में ले जाकर राम से कहा था -''तुम्हारे पिता ने तुम्हारा जीवन चौपट कर डाला ,कम से कम  दहेज़ में इतना तो ले लेते कि तुम्हारी नौकरी का इंतज़ाम हो जाता ....एक तो विधवा ......खैर छोडो ....तुम भी शायद अपने पिता को ही सही मानते हो .''राम ने सहमति में सिर हिलाया था और बहाना बनाकर उनके पास से चला आया था .
                  सप्ताह ,महीने ,दो महीने ...ज़िंदगी राम की भी चल ही रही थी और वैभव की भी पर एक दिन जैसे सब रुक गया .राम को विश्वास न हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है ? पर मोबाइल पर राम को ये सूचना वैभव के पिताजी ने दी थी इसलिए संशय की कोई बात शेष भी न थी .राम थोड़ी देर के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा रहा . रीना ने उसे आँगन में ऐसे खड़ा देखा तो उसके पास पहुंचकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली -'' क्या हुआ ? किसका फोन था ? '' राम हड़बड़ाता हुआ बोला - ''हैं .....क्या .....वो ...वैभव के पिताजी का फोन था ......वैभव और उसकी वाइफ की  सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी है !!!''.....रीना ..रीना ऐसा कैसे हो सकता है ..दो ज़िंदगियाँ ऐसे पल भर में ..!'' ये कहते-कहते राम की आँखें भर आई .रीना उसे सांत्वना देते हुए बोली -'' आप दिल पर न लें ..वहां उनके घर जाइए ..उनका तो बुरा हाल होगा ..मैं माँ-बाबू जी को बताती हूँ !'' ये कहकर रीना अंदर चली गयी और राम के कदम वैभव के घर की ओर बढ़ चले .
   शमशान -घाट में जब  वैभव के पिता जी ने अपने एकलौते पुत्र व् पुत्रवधू की चिताओं को मुखाग्नि दी तब राम की आँखों के सामने न जाने क्यों फांसी पर लटके हुए रीना के पूर्व पति की अखबार में छपी तस्वीर घूम गयी और फिर दो महीने में विधवा हुई रीना की रोती-बिलखती की तस्वीर और फिर वैभव के पिता जी के वे वचन '' एक बार पैसा दे दो फिर ज़िंदगी भर मौज करो '' पर आज राम का ह्रदय भी इस वचन पर पलटवार करता हुआ बोला -'' और जब ज़िंदगी ही न रहे ..मौज करो चाहे तुम्हारे कारण कोई फांसी पर लटक जाये ,कोई रेल से कटकर मर जाये , कोई जल कर मर जाये या मेरी तरह नाक़ाबिलों को सफल होते देखकर भी दृढ़ ह्रदय होकर प्रयास  करता रहे ..अब क्या करोगे ..यमराज से सौदा पटा लो ..प्राण वापस ले आओ इन दोनों के ..नहीं ल सकते ना ...!!!'' ये सोचते सोचते राम की आँखें भर आई और उसका बदन वैभव और उसकी पत्नी की जलती चिता की आग से तपने लगा .उसके कानों में गूंजने लगी ''प्रसाद''की  ''कामायनी'' के ''चिंता '' सर्ग की ये पंक्तियाँ -
  '' अरे अमरता के चमकीले पुतलो ! तेरे वे जयनाद -
    काँप रहे हैं आज प्रतिध्वनि बन कर मानों दीन विषाद
    प्रकृति रही दुर्जेय , पराजित हम सब थे भूले मद में
    भोले थे , हां तिरते केवल सब विलासिता के नद में
     वे सब डूबे , डूबा उनका विभव , बन गया पारावार
   उमड़ रहा था देव सुखों पर दुःख जलधि का नाद -अपार !!''

  शिखा कौशिक 'नूतन '

सोमवार, 8 दिसंबर 2014

''वाह रे पतिदेव !''


नवयुवक राज अपना मोबाइल रिचार्ज कराकर  ज्यूँ ही दुकान से उतरा अनजाने  में उसका हाथ  एक  महिला  से टकरा गया .महिला कुछ कहती इससे पूर्व  ही उसके पति का खून ये दृश्य देखकर  खौल उठा .पतिदेव ने  तुरंत राज का गिरेबान पकड़ लिया और भड़कते हुए बोले -'' औरत को छेड़ता है ! शर्म नहीं आती ? '' राज अपनी सफाई देता हुआ बोला -'' भाई साहब ऐसा इत्तेफाक से हो गया ...मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं था ....फिर भी मैं माफ़ी मांग लेता हूँ .'' ये कहकर राज ने अपना गिरेबान छुड़वाया और उस महिला के आगे हाथ जोड़कर बोला -''माफ़ कर दीजिये भाभी जी !'' महिला ने धीरे से पतिदेव की और देखते हुए कहा -''  अब छोडो भी ..तमाशा करके रख दिया ..कुछ हुआ भी था .ये ठीक कह रहे हैं जी .'' पतिदेव ने एक बार राज को घूरा और पत्नी को समझाते हुए बोले -'' तुम कुछ  नहीं समझती  ...ये आवारा लड़के ऐसे ही औरतों  को छेड़ते फिरते हैं  ...मेरे सामने कोई  तुम्हे हाथ लगाये ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता ...चल अब निकल ले   लड़के ..आगे से याद रखना किसी महिला को छेड़ना नहीं !'' ये धमकी देकर वे दोनों पति पत्नी पास की एक लेडीज टेलर की दूकान पर चढ़ गए . महिला को अपना  ब्लाऊज़  सिलवाना था  .पति की उपस्थिति  में ही महिला का नाप टेलर के पुरुष असिस्टेंट ने लिया और सड़क के दूसरी ओर की सामने की दूकान पर खड़ा राज मन ही मन मुस्कुराता हुआ सोचने लगा  - '' वाह रे पतिदेव ! ..पत्नी को कोई और हाथ लगाये तो इसे बर्दाश्त नहीं होता ..फिर अब कैसे बर्दाश्त हो गया ? ''

शिखा कौशिक 'नूतन '

रविवार, 7 दिसंबर 2014

गांधी '' सरनेम ''


PUBLISHED IN JANVANI'S RAVIVANI -7DECEMBER2014


'पिया गांधी ...'' उपस्थिति दर्ज़ करती मैडम ने कक्षा में ज्यों ही पिया का नाम पुकारा ग्यारहवी की छात्रा पिया हल्का सा हाथ उठाकर ''यस मैडम '' कहते हुए अपनी कुर्सी से खड़ी हो गयी .सभी छात्राएं पिया की ओर देखने लगी .कक्षा में तीसरी पंक्ति में दायें किनारे पर खड़ी पिया को बड़ा अजीब लगा .अभी-अभी गुजरात से उत्तर प्रदेश शिफ्ट हुए परिवार में पिया और उसके माता-पिता के अलावा उसका प्यारा पॉमेरियन डॉगी ''बुलेट'' भी था .उत्तर प्रदेश के जिस शहर में आकर पिया का परिवार बसा था वो विकसित-विकासशील-पिछड़ेपन का संगम था .एक ओर गगनचुम्बी इमारतें ,मॉल और दूसरी ओर झोपड़पट्टी इलाका .खैर क्लास टीचर ने मुड़कर देखती छात्राओं को डांट लगायी और पिया से पूछा -''क्या तुम गांधी फैमिली से हो ?'' पिया ने मुस्कुराकर ''हाँ' कहा तो सारी क्लास हॅसने लगी और मैडम भी मुस्कुरा दी .अगले ही पल पिया सफाई देते हुए बोली -'' नो मैडम ...मेरा मतलब हम भी गांधी हैं .'' ये कहकर पिया ने पहले जल्दबाज़ी में दिए गए अपने उत्तर के लिए खुद को मन में कोसा '' क्यूँ नहीं समझ पायी मैडम के किये गए सवाल का निहितार्थ ? पापा ने ठीक ही किया जो अपने नाम के साथ ''गांधी'' सरनेम नहीं जोड़ा पर दादा जी की जिद पर मेरे नाम के आगे ये जोड़ दिया गया ...ओह माई गॉड !!'' यही सोचते-सोचते पिया का नए कॉलेज में पहला दिन गुजर गया था .कॉलेज से लौटते समय पीछे से पिया की क्लास की एक छात्रा ने उसे आवाज़ लगाई -'' मिस गांधी ...मिस गांधी !!'' पिया के दिल में अपने लिए यह सम्बोधन सुनकर आग लग गयी .पिया के मन में आया -'' काश रिवाल्वर होती मेरे पास तो अभी इस लड़की के पेट में छह की छह गोली उतार देती .'' पर अपनी खीज़ अपने मन में दबाकर बनावटी मुस्कान अधरों पर लाकर पिया ने पीछे मुड़कर देखा .ये वही लड़की थी जो आज क्लास रूम में उसका उत्तर सुनकर सबसे ज्यादा मुड़ मुड़कर देख रही थी .तेजी से चलकर आयी साथी छात्रा ने पिया के समीप आते ही हांफते हुए कहा - 'हाय !...आई एम् टीना ..टीना अग्रवाल '' ये कहकर उसने पिया की ओर दोस्ती के लिए हाथ बढ़ा दिया .पिया ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा -'' एंड आई एम् पिया !'' टीना पिया को टोकते हुए बोली -'' पिया नहीं ...यू आर पिया गांधी ...यूं नो आई एम् मैड अबाउट गांधी सरनेम .इस सरनेम के जुड़ते ही नाम कितना खास हो जाता है ...सोचो काश मैं भी गांधी होती तो ....मिस टीना गांधी ...ओह माई गॉड ...कितना अच्छा लगता !!!'' टीना उत्साहित होकर बोले जा रही थी और पिया जान चुकी थी कि इस लड़की की दिलचस्पी केवल उसके सरनेम '' गांधी'' में है उसमे कतई नहीं . टीना एक गली के मोड़ पर रुकी और बोली -''मिस गांधी इसी गली में मेरा घर है ...प्लीज डू कम !'' पिया ने मुस्कुराकर हामी भर दी किसी दिन उसके घर आने के लिए और अपने घर की ओर कदम बढ़ा दिए .
घर पहुँचते ही बुलेट दौड़कर पिया पास आकर मचलने लगा .पिया ने झुककर उसे उठा लिया पर तभी सड़क से कुत्तों के भौकने की आवाज़ सुनकर बुलेट पिया की गोद से छलांग लगाकर गेट पर जाकर भौकने लगा .पिया ने यूनिफॉर्म चेंज की और फ्रेश होकर माँ के पास किचन में पहुँच गयी .माँ ने दाल, भात ,रोटी और शाक सभी कुछ बनाया था .खा-पीकर पिया अपने कमरे में पहुंची और स्कूल बैग से निकाल कर कॉपी-किताबें कोने में लगी एक टेबिल पर कायदे से लगाने लगी .एक किताब उठाकर उस पर लगी चिट पर लिखा अपना सरनेम देखकर पिया को टीना की बात याद आ गयी -'' इस सरनेम के जुड़ते ही नाम कितना खास हो जाता है .'' .
शाम ढलने लगी थी . अभी भी इस शहर की सुबह व् शाम पिया को अपनी सी नहीं लगती थी .पिया के मन में एक अजीब सी मायूसी छा जाती थी ये सोचकर कि अपने गुजरात में क्या अब भी वैसी ही सुबह व् शाम होती है ? माँ संध्या -वंदन में व्यस्त थी और पापा अब तक लौटकर नहीं आये थे घर .पिया बुलेट के साथ छत पर चली गयी .आकाश में उड़ती पतंगें देखकर अपने गुजरात के अंतर्राष्ट्रीय पतंग मेले की यादें ताज़ा हो आयी पिया के दिल में .पापा के साथ कितनी पतंग उड़ाई हैं उसने वहाँ .गोधरा हादसे और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद से ही पिया के पापा का मन वहाँ से उखड गया था .श्री कृष्ण द्वारा बसाई गयी द्वारिका वाले गुजरात में खून की खेली गयी होली ने पिया के पापा को अंदर तक हिला डाला .अपने मुस्लिम दोस्त के साथ मिलकर कपड़ों का बड़ा बिजनेस करने वाले पिया के पापा के सामने ही कुछ उन्मादियों ने उनके दोस्त को काट डाला था .कई महीनों के इलाज के बाद नॉर्मल हो पाये थे पिया के पापा . उसी क्षण उन्होंने गुजरात छोड़ने का निश्चय कर लिया था .बिजनेस समेटते समेटते अब शिफ्ट हो पाये थे वे .दादा-दादी ज़िंदा होते तो अब भी शिफ्ट न करने देते पर गुजरात दंगों की आग बुझते बुझते वे दोनों भी चल बसे थे .दादा अंतिम दिनों में दंगों में क़त्ल किये जा रहे मासूमों के बारे में पढ़-सुनकर रो पड़ते और कहते '' मेरे गांधी की जन्म-भूमि पर ये क्या हो रहा है ?'' पिया के पापा का चेहरा लाल हो जाता और माँ दादा जी को समझाते हुए कहती -'' बापू जी अब गुजरात गांधी का नहीं रहा !!'' और ...और भी न जाने कितनी यादें उसी पल पिया के दिल में हलचल मचाने लगी . एक पतंग तभी कटकर पिया के पास आकर गिरी .पिया उसे उठाती उससे पहले ही बुलेट दौड़कर आया और पतंग को मुंह से पकड़कर -पंजे से दबाकर वही बैठ गया .पिया ने झुककर उससे पतंग छुड़ाने की कोशिश की तो पूंछ हिलाने लगा .नीचे से तभी माँ की आवाज़ आयी -'' पिया नीचे आओ ...आरती ले लो !'' पिया पतंग और बुलेट को वही छोड़कर जल्दी से सीढ़ियां उतर कर नीचे आ गयी .हाथ धोकर माँ के पास मंदिर में पहुंचकर हाथ जोड़े और आरती ली .थोड़ी देर में पापा भी दूकान बढाकर घर आ गए .माँ ने कॉफी बना ली .पापा ने पिया को छेड़ते हुए पूछा -'' और आज क्या कर आयी मेरी बिटिया नए कॉलेज में ?'' पिया झूठा गुस्सा दिखाती हुई बोली -'' क्या पापा ...आप भी ...आज मेरा मूड ठीक नहीं है ..आपने बिल्कुल ठीक किया था .. अपने नाम के आगे से '' गांधी '' सरनेम हटा कर '' कुमार'' जोड़ लिया था .यहाँ कॉलेज में मेरा सरनेम मेरे पूरे वज़ूद पर ही हावी हो गया है .यू नो पापा एक लड़की टीना तो मेरे सरनेम की दीवानी ही है .यहाँ उत्तर प्रदेश में '' गांधी'' सरनेम के दीवाने कुछ ज्यादा ही लगते हैं ...या हम पहले '' गांधी'' हैं जो गुजरात छोड़कर उत्तर प्रदेश में शिफ्ट हुए हैं .'' पिया की बात पर उसके पापा ठहाका लगाकर हॅस पड़े .कॉफी का खाली मग मेज पर रखते हुए बोले -'' बेटा ' 'गांधी'' के दीवाने तो दुनियां भर में हैं ...वे थे ही ऐसे महापुरुष और मैंने जो सरनेम गांधी अपने नाम के साथ नहीं लगाया वो इसलिए नहीं कि मैं गांधी का दीवाना नहीं बल्कि इसलिए क्योंकि मैं गांधी को भगवान मानता हूँ और कोई मुझे माध्यम बनाकर उनका अपमान करे ये मुझे सहन नहीं होता था ...मेरे कुछ शिक्षक व् सहपाठी ऐसा कुत्सित प्रयास करते रहते थे इसीलिए मैंने सरनेम 'गांधी' हटाकर 'कुमार' जोड़ लिया अपने नाम के साथ ...पर बेटा मैं गलत था .तेरे दादा जी ने तेरे नाम के साथ ''गांधी' जुड़वाकर मुझे मेरी गलती का अहसास करवाया .तुम कभी मत हटाना ये सरनेम .जो तुम्हे माध्यम बनाकर महापुरुषों का अपमान करे उसे मुंह तोड़ जवाब देना ....यू मस्ट प्राउड ऑफ योर ग्रेट सरनेम !'' पिया के पापा ये कहकर चुप हुए ही थे कि कि उसकी माँ चुटकी लेते हुए बोली - '' पिया इनकी गलती की सजा आज तक मैं भुगत रही हूँ .ये सरनेम ''गांधी' न पलटते तो सब मुझे भी '' मिसेज गांधी '' पुकारते पर इन्होने तो ....अरे घडी देखो कितना टाइम हो गया ...पिया चलो भोजन कर लो और पापा के लिए भी परोस कर ले आओ ...मैं बाद में कर लूंगी पहले साड़ी में फॉल टॉक लूं ...तुम्हे अपने गुजरात की ये बात तो याद होगी ही ...वेलो उठे वीर , बल बुद्धि वड़े ,अने सुख्यु रहे अनु शरीर ....याद है कि नहीं !'' पिया मुस्कुराते हुए बोली '' माँ ये भी कोई भूलने की बात है क्या !'' ये कहकर पिया भोजन परोसने किचन की ओर चली गयी और उसकी माँ साड़ी लेने .
अगले दिन कॉलेज में पहुँचते ही प्रार्थना स्थल पर टीना ने कई अन्य सहपाठिनियों से पिया का परिचय कराते हुए कहा -'' ये सोमिया है और ये गरिमा ...और ये है तन्वी ...मिस गांधी !'' टीना के पिया को ''मिस गांधी'' कहते ही तन्वी भड़ककर बोली -'' टीना ये क्या तूने मिस गांधी... मिस गांधी लगा रखा है ...तुझे पता भी है इन्ही गांधी के कारण देश के दो टुकड़े हुए ...माय फादर टोल्ड मी ...इन्ही गांधी जी की ज़िद पर मिस्टर नेहरू को भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बनाया गया और देख लो कश्मीर सहित पूरे भारत का हाल ...तू क्या मिस गांधी कहकर इस लड़की के पास खड़ी हो गर्व का अनुभव कर रही है अरे इन गांधी लोगों ने ही ..इनके परनाना ,दादी ,पापा और भी न जाने किस किस ने जनता के भरोसे का खून किया है ...साठ वर्षों तक हमने इन्हें सत्ता का सुख प्रदान किया और इन लोगों ने देश को गरीबी ,बेरोजगारी , चोरी ,साम्प्रदायिकता ,बड़े बड़े घोटाले दिए ....आई हेट गांधी एंड हिस डायनेस्टी ...मिस गांधी !!! '' तन्वी की कड़वी बातें सुनकर पिया की आँखे भर आई .टीना तन्वी को डांटते हुए बोली -'' व्हाट नॉनसेंस ....क्या बकवास करे जा रही है तन्वी ...इस सब से पिया का क्या लेना देना ?'' तन्वी व्यंग्य में बोली -'' ओह ...सो इनोसेंट ...तू गांधी सरनेम के पीछे यु ही दीवानी हुई जा रही है ! अरे हम सब जानते हैं '' गांधी फैमिली '' को भारत में राजपरिवार का दर्ज़ा प्राप्त है इसी कारण इस सरनेम का क्रेज़ है और तुम जैसे क्रेज़ी लोग हैं यहाँ ...फिर आलोचनाओं पर आँसूं क्यों टपकाते हो और तुम्हारे महान गांधी की असलियत तो '' रियल सोल — महात्मा गांधी एंड हिज स्ट्रगल विथ इंडिया '' और 'दी रेड साड़ी ' में खोल कर रख दी हैं लखकों ने ...पढ़ी नहीं अब तक कितने चरित्र...'' तन्वी आगे बोलती इससे पहले ही पिया दहाड़ती हुई बोली -'' चुप हो जाओ तुम ...तुम इस लायक नहीं कि राष्ट्र पिता का नाम भी ले सको .अपना सर्वस्व लुटाकर देश को आजाद कराने वाले गांधी जी का नाम सम्मान से ले सकती हो तो लो वर्ना चुप रहो और रही 'गांधी फैमिली '' की बात तो उन्होंने '' गांधी'' सरनेम का मान देश ही नहीं दुनिया में भी बढ़ाया है .देश को बांटने वाले ,साम्प्रदायिकता की आग में झोंकने वालों के आगे उन्होंने कभी सिर नहीं झुकाया और अपने प्राणों की आहूति दे दी . तुम जिन पुस्तकों का जिक्र कर रही हो उन्हें पढ़ने से अच्छा है कि हम इन महान देशभक्तों के प्रेरक प्रसंगों को पढ़कर इनसे कुछ देश सेवा की प्रेरणा लें .मेरे दादा जी कहते थे कि हम उन्माद में गोली चलाने वाले 'गोडसे' तो रोज़ पैदा कर सकते हैं पर गांधी जी जैसा महापुरुष सदियों में एक ही पैदा होता है जो देश की खातिर अपने सीने पर गोली खाता है .नाओ टेल मी अंडरस्टैंड और नॉट मिस .???..'' तन्वी कुछ बोलना ही चाहती थी कि प्रार्थना स्थल पर शिक्षक गण आने लगे और प्रार्थना आरम्भ हो गयी .प्रार्थना के बाद तन्वी ने क्लास में पहुँचते ही पिया से कहा -'' आई एम् सॉरी मिस गांधी !'' इस पर पिया ने उसे गले से लगा लिया तभी टीना ने पीछे से आकर पिया के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा -हे मिस गांधी ..यू आर ग्रेट ..तुमने तो कमाल ही कर दिया ..तुम्हारा नाम तो इंदिरा होना चाहिए था .....आई मीन आइरन लेडी !!'' पिया मुस्कुराते हुए बोली -'' तुम्हारे पास भी '' गांधी '' सरनेम लगाने का एक मौका है तुम गांधी सरनेम वाले लड़के से विवाह कर लो .'' इस पर टीना शरमा गयी और तन्वी ''यू आर राइट पिया .'' कहती हुई हंस पड़ी .
शिखा कौशिक 'नूतन

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

गुलाब नहीं तेज़ाब -लघु कथा


गुलाब नहीं तेज़ाब -लघु कथा
  
 सुमन ने पिया के हाथ में गिफ्ट देखा  तो तपाक से उससे गिफ्ट झपटने की कोशिश करते हुए  हुए बोली 'अरे दिखा ना साहिल  ने क्या  गिफ्ट दिया है  ?'' पिया ने न चाहते हुए भी गिफ्ट पैक उसे पकड़ा दिया . सुमन बंद गिफ्ट पैक को हिलाते हुए बोली -'' लगता है कुछ ज्यादा ही मंहगा गिफ्ट दिया है साहिल ने तुझे ...कुछ भी कहो रजत से ज्यादा दिलदार है साहिल .अच्छा हुआ जो तूने उससे ब्रेकअप कर लिया .'' पिया इठलाते हुए बोली -''अरे जो अच्छे गिफ्ट नहीं दे सकता मुझे ..वो शादी के बाद मेरे नखरे कैसे उठाता ? यू नो मैं कितनी खर्चीली हूँ ..जो भी अच्छी चीज़ देखी खरीदने को मन मचल जाता है ...रजत मेरे टाइप का था ही नहीं ..बस थोड़े दिन टाइम पास कर लिया उसके साथ...बोरिंग ..और ये देखो एक सप्ताह भी  साहिल से दोस्ती हुए नहीं हुआ और इतना बड़ा गिफ्ट ....अरे खोलो ना ...आई कांट  वेट ...!'' पिया के ये कहते ही सुमन ने ज्यूँ ही गिफ्ट पैक खोला वे दोनों उसके अंदर रखी चीज़ को देखकर हैरान रह गयी .गिफ्ट पैक में दो शीशियां रखी थी .एक पर लिखा था गुलाब का इत्र और दूसरी पर तेजाब .साथ में एक पत्र भी था .पिया ने तुरंत उस पत्र को उठाकर खोलकर पढ़ना शुरू किया .उसमे लिखा था -'' पिया तुम क्या सोचती हो ..तुमने अपने खूबसूरती के जाल में मुझे फंसा लिया ...यू आर मैड ! तुम मुझे नहीं फंसा सकती थी क्योंकि मैं रजत का दोस्त हूँ और अच्छे-बुरे का अंतर जानता हूँ .मेरा दोस्त रजत तो गुलाब के इत्र की तरह है जो अपनी खुशबू से सारे संसार को महका सकता है .तुमने उसके साथ मसखरी कर उसका  दिल तोडा पर वो फिर भी तुम्हारे सुखद भविष्य की कामना करता है पर मैं इस गिफ्ट में रखे तेजाब की तरह हूँ मैं धोखा देने वाले को जलाकर ख़ाक कर देने में यकीन करता हूँ .बेहतर होगा भविष्य में तुम मुझसे दूर ही रहो  .आशा करता हूँ तुम्हे मेरा गिफ्ट बहुत पसंद आएगा ..'' ये पढ़ते-पढ़ते पिया के पसीने छूट गए .उसे आज समझ में आया कि उसकी सोच कितनी घिनौनी है जिसने रजत जैसे हीरे को हमेशा के लिए खो दिया था .

शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 3 दिसंबर 2014

''दलित देवो भव:''-कहानी


घर का सैप्टिक टैंक लबालब भर गया था .सारू का दिमाग बहुत परेशान था .कोई सफाईकर्मी नहीं मिल पा रहा था .सैप्टिक टैंक घर के भीतर ऐसी जगह पर था जहाँ से मशीन द्वारा उसकी सफाई संभव न  थी .सारू को याद आया कि उसके दोस्त अजय की जानकारी में ऐसे सफाईकर्मी हैं जो सैप्टिक टैंक की सफाई का काम करते हैं .उसने अजय को दोपहर में फोन मिलाया तो अजय ने उसे आश्वासन दिया कि वो अपनी जानकारी के सफाईकर्मियों को उसके घर सैप्टिक टैंक की सफाई हेतु भेज देगा .सारू की चिंता कुछ कम हुई .
                      शाम होते होते तीन सफाईकर्मी सारू के घर पर आ पहुंचें ..सैप्टिक टैंक का ढक्कन हटाकर  एक  सफाईकर्मी ने देखा तो सैप्टिक टैंक मल से भरा पड़ा था .झानू  नाम के उस सफाईकर्मी  ने सारू को सैप्टिक टैंक दिखाते हुए कहा -'' बाऊ जी  तीन हज़ार रूपये लगेंगे   .इसमें तो मलबा ही मलबा भरा पड़ा है .उठाकर  बाहर फेंकना होगा सड़क पर .पानी तो कतई नहीं है जो नाली में बहा देते ..'' झानू की बात पर सहमति जताते हुए सारू बोला -''ठीक है भाई ...पर इसे कल साफ़ कर दो .....दुर्गन्ध के कारण घर में रहना मुश्किल हो गया है .'' झानू सारू को विश्वास दिलाता हुआ बोला -'' सवेरे ही आ लेंगे हम अपनी बाल्टियां लेकर ....कुछ एडवांस मिल जाता तो ...'' झानू के ये  कहते ही सारू ने पेंट की अगली दायीं जेब में रखा अपना पर्स निकला और पांच सौ का नोट झानू के हाथ में थमा दिया .तीनों सफाईकर्मी हाथ उठाकर माथे के पास लेकर सारू को सलाम करते हुए वहां से चले गए .
सारू ने उनके जाने के बाद अजय को फोन मिला और सारी बात बता दी .अजय ने सारी बात सुनकर कहा -''पता है तुझे पांच सौ रूपये क्यों ले गए झानू हर एडवांस में ....रात को दारू पीकर पड़ जायेंगें साले .'' सारू अजय की बात का जवाब देते हुए बोला -'' दारू पीकर न पड़ें  तो और क्या करें ?ऐसा गन्दा  काम ये ही कर रहे  हैं ...कोई दुनिया की सारी दौलत भी तुम्हें दे दे तो भी क्या तुम ये काम कर पाओगे ? '' सारू के इस सवाल पर अजय सहमति देता हुआ बोला -'' हां सारू ये बात तो हैं ..तू सच कह रहा हैं ..जानता हैं झानू देवी के मंदिर में ढोल बजाता हैं और एक पैसा तक नहीं लेता .चल कल को काम हो जाये तब फोन कर के बता देना .'' ये कहकर अजय ने फोन काट दिया .
 अगले दिन सुबह नौ बजे करीब झानू और उसके दोनों साथ अपनी बाल्टियां लेकर सैप्टिक टैंक की सफाई हेतु सारू के घर आ पहुंचें .सैप्टिक टैंक के चारों ढक्कन हटते ही जहरीली गैसों की ऐसी दुर्गन्ध फैली कि सारू का वहां खड़ा रहना मुश्किल हो गया .झानू  सारू को वहां से जाने के लिए कहता हुआ बोला -'' बाऊ जी आप जाओ..जब काम हो जायेगा मैं आपको बुला लूँगा .'' झानू के ये कहने पर सारू एक कमरे में चला गया .झानू ने एक बांस से सैप्टिक टैंक की गहराई नापी और अपने  साथियों से बोला -एक को इसमें  उतरना होगा .झानू के ये कहते ही उसका एक साथी पेंट को घुटनों तक मोड़ कर उसमें उतर गया .लगभग दो घंटे के कठोर परिश्रम से झानू और उसके साथियों ने सैप्टिक टैंक की सफाई कर दी .सफाई के बाद झानू ने सारू को आवाज़  लगाई -'' बाऊ जी अब आ जाइये .'' सारू कमरे से निकल कर वहां पहुंचा .सैप्टिक टैंक साफ़ हो चूका था .सैप्टिक टैंक में उतरे हुए सफाईकर्मी ने सैप्टिक टैंक में आये हुए पाइपों में हाथ घुसाकर दिखाया कि पाइप पूरी तरह से खुले हुए हैं .सारू के मन में आया -'' सफाईकर्मियों को विशेष प्रकार के दस्ताने व्  मुंह-नाक पर लगाने के लिए सेफ्टी कैप दिए  जाने चाहियें ताकि वे  इस खतरनाक काम को करते हुए अपने स्वास्थ्य के साथ कोई खिलवाड़  न करें पर इस सब पर ध्यान ही किसका है ?'' सारू के ये सोचते हुए ही झानू बोला -''बाऊ जी अब हमारी बाल्टियां व् हमारे हाथ-पैर साफ़ पानी से धुलवा दीजिये .'' सारू ने पास ही भरी एक टंकी से मग्घे द्वारा पहले बाल्टियां धुलवाई फिर  एक एक कर तीनों के हाथ पैर धुलवाए .

उनके हाथ पैर धुलवाते हुए उनके चेहरे पर दीन-हीन भाव देखकर  सारू विचारमग्न हो उठा -'' ये झानू और उसके साथी सामान्य जन नहीं हैं ...ये धरती पर भगवान हैं ..जैसे भगवान शिव ने समुन्द्र-मंथन के समय निकले कालकूट महाविष को पीकर पूरे ब्रह्माण्ड को उसके महाघातक जहरीले कुप्रभाव से बचाया था ऐसे ही ये शिवदूत हमें मल-मूत्र के घातक जहरीली गैसों के कुप्रभावों से बचाते हैं .ये क्यों दीन भाव चेहरे पर लिए रहते हैं ?ये तो हमारे पूज्य हैं !इनके आगे हम सिर उठाकर बात करने लायक भी कहाँ हैं !इनके सामने तो हमें हाथ जोड़कर खड़े रहना चाहिए .ये तो जन्म देने वाली माँ से भी बढ़कर हैं .वो भी अपने जने बच्चे के ही पोतड़े धोती है पर ये ..ये तो पूरे समाज की गंदगी साफ़ करते हैं ..सैप्टिक टैंक के भीतर गंदगी में घुसे सफाईकर्मी को देखकर जब मैंने आँखें बंद की तब मुझे शमशान  में चिता की राख के बीच  तांडव करते काल-भैरव नज़र आये ......हां ये ही भगवान को सबसे ज्यादा प्रिय होंगें और हम इनके ही मंदिरों में प्रवेश पर रोक लगाते हैं ! इनके हाथ से हमारा हाथ छू  जाये तो घृणा करते हैं ...मुझे अच्छी तरह याद है दादी किसी भी सफाईकर्मी को कुछ देते समय इतनी एहतियात बरतती थी कि उनके हाथ की   ऊँगली सफाईकर्मी की ऊँगली से छु भर न जाये और अगर  गलती से मैं किसी ऐसी चीज़ को छेड़ देता जिसे किसी सफाईकर्मी ने छेड़ा हो तो मुझे ''चूड़े का हो गया '' कहकर चिढ़ाया  जाता .कितने नीच हैं हम !सैप्टिक टैंक के भीतर घुसे झानू के साथी को देखकर कितनी लज्जा आ रही थी खुद पर ..क्या दे देते हैं हम ..हज़ार..दो हज़ार..तीन हज़ार ..पर ये देखो अपने शरीर पर झेलते हैं जहरीली गैसों को  ..गंदगी को और हद तो ये है कि तब भी इन्हें नीच समझा जाता है और ये भी खुद को दीन-हीन समझते हैं .मानव मानव में इतना भेद पैदा करने वाले विद्वान पूर्वजों ने क्या कभी सोचा कि यदि ये गंदगी की सफाई न करते तो चारों ओर फैली दुर्गन्ध के बीच वे वेद-पाठ कैसे कर पाते ?इनके शरीर से आने वाली दुर्गन्ध पर नाक से कपडे ढँक लेने वाले समाज ने कभी सोचा कि इस दुर्गन्ध के जिम्मेदार तुम ही श्रेष्ठ जाति के जन हो ! जब तुम इनके प्रति घृणा का प्रदर्शन करते हो तब एक बार भी सोचते हो कि जिन पाख़ानों में तुम मल-मूत्र का विसर्जन कर  ,थूककर बाहर निकल आते हो उन्ही पाख़ानों को तुम्हारे जैसे मानव अपना कार्यक्षेत्र समझकर साफ़ करते हैं .घृणा तो उन्हें करनी चाहिए तुमसे ! गंदगी की सफाई कर उसे स्वच्छ बनाने वाले घृणा नहीं पूजा के अधिकारी हैं !'' सारू ने ऐसे ही निर्मल भावों से झानू और उसके साथियों के हाथ-पैर धुलवाले .और उसके पश्चात उनके शेष पच्चीस सौ रूपये देकर हाथ जोड़कर उन्हें विदा किया .घर से विदा हुए उन तीनों को जाते देखकर सारू को लगा जैसे त्रिदेव आज उसके घर आये थे और न केवल सैप्टिक टैंक की सफाई हुई थी आज बल्कि उसका मन भी पहले से ज्यादा निर्मल हो गया था .

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

कौन बिगाड़े किसको !-लघु कथा


किशोरी बबली छत  पर कपड़े सुखा रही थी और  उसके साथ छत पर ही खड़ा उसका छोटा किशोर भाई बिल्लू  नीचे सड़क पर आती-जाती लड़कियों  को देखकर बड़बड़ाये जा रहा था . .बबली ने कपड़े  सुखाने के बाद बिल्लू को डांटते  हुए कहा -'' क्या बड़बड़ाये जा रहा है ?''  बिल्लू सड़क पर जाती एक लड़की की ओर इशारा करते हुए बोला -'' देख जिज्जी क्या पहन कर जा रही है वो लड़की ! शर्म नहीं आती इसे .लड़कों को बिगाड़ कर रख दिया है इन्होंने !'' बबली ने बिल्लू के सिर पर चपत लगाते हुए कहा -''लड़को को इन्होंने नहीं बिगाड़ा ..लड़के खुद ही बिगड़े हुए हैं ...तुम ध्यान क्यों देते हो इन पर ?तुम गौर करना छोड़ दो ये खुद सलीके के कपड़े पहनने लगेंगी और तू ...तू क्या किसी और को कह रहा है ...खुद केवल निक्कर पहन कर यहाँ खुले में आकर खड़ा हो गया ..अब कोई लड़की तुझे देख ले तो तू उस लड़की को ही बेशर्म कहेगा कि तुझ नंगे को देख रही है  या उसे बिगाड़ने की जिम्मेदारी खुद पर लेगा .'' ये कहकर बबली हँसते  हुए सीढ़ियों की ओर बढ़  ली और बिल्लू फिर से सड़क पर आती-जाती लड़कियों को निहारने में व्यस्त हो गया .

शिखा कौशिक 'नूतन'