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शनिवार, 2 मई 2015

जीवन-यात्रा


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जीवन-यात्रा

मशहूर उद्योगपति की पत्नी और दो किशोर पुत्रों की माँ हेम जब भी एकांत में बैठती तब उसकी आँखों के सामने विवाह के पूर्व की  घटना का एक-एक दृश्य घूमने लगता .कॉलेज में उस दिन वो सरस से आखिरी बार मिली थी .उसने सरस से कहा था कि -'' चलो भाग चलते हैं वरना मेरे पिता जी मेरा विवाह कहीं और कर देंगें !'' इस बात पर सरस मुस्कुराया था और नम्रता के साथ बोला था -'' हेम ये सही नहीं है .हम अपना सपना पूरा करने के लिए तुम्हारे पिता जी की इज़्ज़त मिटटी में नहीं मिला सकते .घर से भागकर तुम सबकी नज़रों में गिर जाओगी और मैं एक आवारा प्रेमी घोषित हो कर रह जाऊंगा .अगर हमारा प्यार सच्चा है तो तुम अपने पिता जी को समझाने  में सफल रहोगी अन्यथा वे जहाँ कहें तुम विवाह-बंधन में बंध जाना .'' हेम सरस की ये बातें सुनकर रूठकर चली आई थी .उसने आज तक न पिता से सरस के बारे में कोई बात की थी और अब निश्चय कर लिया था कि पिता जी जहाँ कहेंगें वहीँ विवाह कर लूंगी पर . हेम के  आश्चय की सीमा न रही थी कि अब पिता जी ने उसके विवाह की बात करना ही छोड़ दिया था फिर एक दिन माँ हेम के कमरे में आई एक लड़के का फोटो हाथ में लेकर और हेम को दिखाते हुए बोली -'' तुम्हारे पिता जी ने इस लड़के को तुम्हारे लिए पसंद कर लिया है .'' हेम ने पहले तो गौर से फोटो को नहीं देखा पर एकाएक उसने माँ के हाथ से लगभग छीनते  हुए फोटो को ले लिया और हर्षमिश्रित स्वर में बोली -'' ये तो सरस हैं .'' माँ फोटो हेम से वापस लेते हुए बोली -'' हां ! ये सरस है और इसमें तुझसे ज्यादा समझ है . तू क्या सोचती है तेरे पिता जी को ये नहीं पता था कि तू सरस से प्रेम करती है और घर से भाग जाने  तक तो तैयार  थी .अरे ........ये सब  जानते  थे  .सरस की भलमनसाहत ही भा  गयी इन्हें और अपने एकलौते होने वाले दामाद को अपने साथ बिजनेस में लगा लिया .वहां भी सरस ने अपनी योग्यता साबित की .तेरा तो नाम ही हेम है पर सरस तो सच्चा सोना है !'' माँ के ये कहते ही हेम माँ से लिपटकर कर रो पड़ी थी .आज जब हेम ये सब अतीत में हुई बातों में खोयी थी तभी किसी ने उसके कंधें पर हौले से हाथ रखा तो वह समझ गयी ये सरस ही हैं .उसके मन में आया -'' सरस के बिना उसकी जीवन -यात्रा कितनी रसहीन होती इसकी कल्पना करना भी कठिन है !''

शिखा कौशिक 'नूतन'